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खुली   आँख   आधी,   हुआ   सर   जो   भारी लगा   कर   सुबह   मैंने,   शब   की   उतारी नया कुछ नहीं तो, वही बात कर लें? के कुछ बात तो हो, तुम्हारी हमारी मेरी बात उससे, और उस की किसी से है तो चींटियों सी ही आदत तुम्हारी ये नफरत का धंदा, यूँ कब तक चलेगा कभी तेरी बारी, कभी मेरी बारी कभी रास हो सकता है, आ भी जायें   है फिलहाल हालात से, जंग जारी जो गुलशन इशारो पे अब नाचता है मुहल्ले का सबसे बड़ा था मदारी

मैं अपनी राह हूँ, तु अपनी राह है

यही वो मोड़ है, यहाँ से आगे अब मैं अपनी राह हूँ, तु अपनी राह है