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वफादारी निभानी थी

इसी किरदार में रहकर अदाकारी निभानी है  मुझें एहसाँ फ़रोशों से वफादारी निभानी है  कहाँ राज़ी था मैं भी फिर गले सब को लगाने में   तिरी पगड़ी मिरे सर है सो सरदारी निभानी है 

बरकत हो गई

जब से मुझ पे उसकी रहमत हो गई  रेज़गारी में भी बरकत हो गई  लड़ते लड़ते थक गए फिर आपसे  एक दिन हमको मुहब्बत हो गई कौन जीना चाहता था इस तरह और अब यूँ हैं कि आदत हो गई ये सिला है बन्दगी का बस तो फिर  हो गयी जितनी इबादत हो गई आप सब से प्यार करते रह गये आप ही से सबको नफ़रत हो गई तीन में हैं आप न तेरह में हैं देखिए गुलशन जो हालत हो गयी 
खुली   आँख   आधी,   हुआ   सर   जो   भारी लगा   कर   सुबह   मैंने,   शब   की   उतारी नया कुछ नहीं तो, वही बात कर लें? के कुछ बात तो हो, तुम्हारी हमारी मेरी बात उससे, और उस की किसी से है तो चींटियों सी ही आदत तुम्हारी ये नफरत का धंदा, यूँ कब तक चलेगा कभी तेरी बारी, कभी मेरी बारी कभी रास हो सकता है, आ भी जायें   है फिलहाल हालात से, जंग जारी जो गुलशन इशारो पे अब नाचता है मुहल्ले का सबसे बड़ा था मदारी

मैं अपनी राह हूँ, तु अपनी राह है

यही वो मोड़ है, यहाँ से आगे अब मैं अपनी राह हूँ, तु अपनी राह है