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Showing posts from 2011

ਲੜਨਾ ਤੇ ਦੁਰ ਕਦੀ ਉੱਚੀ ਵੀ ਨੀ ਬੋਲਣਾ

ਮਾਂ ਪੇਯਾ ਦੇ ਜਿਗਰੇ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦੇ ਫਰੋਲਣਾ  ਲੜਨਾ ਤੇ ਦੁਰ ਕਦੀ ਉੱਚੀ ਵੀ ਨੀ ਬੋਲਣਾ ਤਨ੍ਗੀਯਾਂ ਚ ਰੈਕੇ, ਤੇਰੇ ਕੰਮ ਸਾਰੇ ਹੋਣਗੇ  ਤੇਰੇ ਸਿਰੋੰ ਆਪਣੇ ਵੀ ਸੁਖ ਵਾਰੇ ਹੋਣਗੇ  ਛੋਟੇ ਵੱਡੇ ਕਿੰਨੇ ਅਰਮਾਨ ਮਾਰੇ ਹੋਣਗੇ  ਗਲ ਕੋਈ ਹੋਜੇ ਪਾਵੇਂ, ਤੂ ਨਹੀ ਮੁਹ ਖੋਲਨਾ ਲੜਨਾ ਤੇ ਦੁਰ ਕਦੀ ਉੱਚੀ ਵੀ ਨੀ ਬੋਲਣਾ ਵੱਡਾ ਏਂ ਵਪਾਰੀ ਵੱਡੇ ਖਵਾਬ ਤਕੜਾ ਹੈ ਤੂ ਸ਼ੇਹਰ ਵਿਚ ਰੁਤਬਾ ਵੀ, ਠੀਕ ਰਖਦਾ ਹੈ ਤੂ ਭਾਵੇਂ ਅੱਜ ਕੁਛ ਵੀ ਖ਼ਰੀਦ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੂ ਅਮੁੱਲੀ ਨੇ ਅਸੀੰਸਾ ਬੰਦੇ ਲਾਯੀਂਮ ਕੋਈ ਮੁਲਨਾ ਲੜਨਾ ਤੇ ਦੁਰ ਕਦੀ ਉੱਚੀ ਵੀ ਨੀ ਬੋਲਣਾ ਆਪਣੇ ਹੀ ਘਰ ਵਿਚ, ਸੇਹ੍ਮੇ ਡਾਰੇ ਬੈਠੇ ਨੇ ਤੇਰੇ ਨੀ ਤਾਂ ਹੋਰ ਦੱਸ, ਕੀਦੇ ਸਿਰੇ  ਬੈਠੇ ਨੇ ਜੋ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਤੇਰੇ ਨਾਂ, ਜਾਏਦਾਦ ਕਰੀ ਬੈਠੇ ਨੇ ਛੱਡ ਦੇ ਓਹਨਾਂ ਨੂ ਇਕ ਕਮਰੇ ਚ ਰੋਲਣਾ ਲੜਨਾ ਤੇ ਦੁਰ ਕਦੀ ਉੱਚੀ ਵੀ ਨੀ ਬੋਲਣਾ Gulshan Mehra 

ਓਹਨਾ ਦੀ ਥਾਂ ਰਾਖ੍ਹ ਵੇਖੀ ਇਕ ਵਾਰੀ !

ਦੁਜੇਯਾ ਦਾ ਲਾਭਦਾ ਕਸੂਰ,  ਤੂ ਗੱਲਾ ਚ ਸਾਰੀ  ਆਪਣੇ ਨੂ ਓਹਨਾ ਦੀ ਥਾਂ ਰਾਖ੍ਹ ਵੇਖੀ ਇਕ ਵਾਰੀ ਹਾਸਾ ਕਿੰਨਾ ਕੀਮਤੀ ਏ, ਰੋਣ ਵਾਲਾ ਜਾਣਦਾ ਏ ਦਿਲ ਤੇ ਕੀ ਬੀਤਦੀ, ਨਿਭਾਉਣ ਵਾਲਾ ਜਾਣਦਾ ਏ ਜੂਤੀ ਕਿਤ੍ਥੇ ਕਟ ਦੀ ਏ, ਪਾਉਣ ਵਾਲਾ ਜਾਣਦਾ ਏ ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਨੇ ਤੋ ਪੇਹ੍ਲਾਂ, ਖੁਦ ਤੇ ਨਜ਼ਰ ਮਾਰੀ ਆਪਣੇ ਨੂ ਓਹਨਾ ਦੀ ਥਾਂ ਰਾਖ੍ਹ ਵੇਖੀ ਇਕ ਵਾਰੀ ਕੀਤੇ ਕੋਈ ਪੁਛ ਦਾ ਨੀ, ਆਏ ਦਿਨ ਮਰਦੇ ਨੇ ਉਬਲੇ ਚੋਲਾਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਪੀ ਕੇ ਟੇੱਡ ਪਰਦੇ ਨੇ ਕੀ ਹੋਯਾ ਜੇ ਥੋੜੀ ਬੋਹ੍ਤੀ ਹੇਰਾ ਫੇਰੀ ਕਰਦੇ ਨੇ ਬੱਚੇਯਾਂ ਦੀ ਭੁਖ ਅੱਗੇ, ਛੋਟੀ ਪੇਂਦੀ ਏ ਇਮਾਨਦਾਰੀ ਆਪਣੇ ਨੂ ਓਹਨਾ ਦੀ ਥਾਂ ਰਾਖ੍ਹ ਵੇਖੀ ਇਕ ਵਾਰੀ ਹਾਲਾਤ ਹਤ੍ਥੀ ਹਾਰ, ਕਮਜ਼ੋਰ ਬਣ ਜਾਏਗਾ ਬਣ ਨਾ ਸੀ ਹੋਰ, ਕੁਛ ਹੋਰ ਬਣ ਜਾਏਗਾ ਮੇਹਨਤ ਨਾ ਸਰਨਾ ਨੀ, ਚੋਰ ਬਣ ਜਾਏਗਾ ਇਕ ਤਾਂ ਗਰੀਬ ਸੀ, ਦੂਜੀ ਲਾਗ ਗੀ ਬਿਮਾਰੀ ਆਪਣੇ ਨੂ ਓਹਨਾ ਦੀ ਥਾਂ ਰਾਖ੍ਹ ਵੇਖੀ ਇਕ ਵਾਰੀ Gulshan Mehra

साईं की पालकी घर में आई है !

श्रद्धा सबुरी से मैंने बुलाई है  साईं की पालकी घर में आई है - २ सर झुकाते हुए , गुनगुनाते हुए  साईं महिमा का गुणगान गाते हुए मन मंदिर में मैंने बसाई  है  साईं की पालकी घर में आई है  श्रद्धा सबुरी से मैंने बुलाई है साईं की पालकी घर में आई है सुख मनाते हुए, ग़म भुलाते हुए  कभी रोते हुए , मुस्कुराते हुए  मैंने फूलो से राहें संजाई  है  साईं की पालकी घर में आई है श्रद्धा सबुरी से मैंने बुलाई है  साईं की पालकी घर में आई है  झिलमिलाते हुए, साथ आते हुए चाँद तारों की सौगात लाते हुए  मेरे आँगन में सृष्टि समाई है  साईं की पालकी घर में आई है  श्रद्धा सबुरी से मैंने बुलाई है  साईं की पालकी घर में आई है  Gulshan Mehra

मेरे इश्क में रब है !

मेरे इश्क में तू क्यूँ  नहीं, जब, मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब  है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में रब है जैसे जिस्म में रूह है, जैसे फूल में खुशबु है, जैसे मुझ में तू ही तू है वैसे मुझ में तू ही तू है जैसे हवा छुए तुझे, जैसे पानी तुझे भिगोये, जैसे वैसे ही मुझमे भी तुझको छूने की आरज़ू है तेरी आँख के काजल से ही महकी महकी शब् है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में रब है जैसे रगों में खूँ  है, जैसे दिल में जुस्तज़ू है,  जैसे हरसू तू ही तू है वैसे हरसू तू ही तू है जैसे जहाँ चाहे तुझे जैसे  हर दुआ मांगे तुझे जैसे  वैसे ही मुझमे भी तुझको पाने की आरज़ू है तेरे नशे में डूबे डूबे सारे मंज़र अब है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे  इश्क  में  रब  है    Gulshan Me hra

ਅਲਫਾਜ਼ ਜੋ ਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ !

ਕਦੀ ਉੱਡਦੇ ਬਣ ਜਜ਼ਬਾਤ ਮੇਰੇ  ਕਦੀ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ  ਹੁਣ ਮੇਥੋ ਖ਼ਫਾ ਜੇ ਲਗਦੇ ਨੇ  ਅਲਫਾਜ਼ ਜੋ ਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ  ਕਿੰਨਾ ਚਿਰ ਹੋਏਯਾ ਤਕਦੇ ਨੂ  ਕੋਈ ਮਿਸਰਾ ਚੰਗਾ ਲਭੇਯਾ ਨੀ  ਕਦੀ ਸ਼ੇਰ ਮੇਰੇ ਵਿਚ ਜਚੇਯਾ ਨੀ  ਕਦੀ ਦਿਲ ਨੂ ਮੇਰੇ ਫ੍ਬ੍ਯਾ  ਨੀ   ਮਿਟ੍ਠੇ ਲਫਜ਼ਾ ਸੰਗ ਰਲ ਕੇ  ਕਿੱਦਾ ਸੁਰ ਸੰਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹੁਣ ਮੇਥੋ ਖ਼ਫਾ ਜੇ ਲਗਦੇ ਨੇ  ਅਲਫਾਜ਼ ਜੋ ਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ   ਹੁਣ ਖ਼ਾਲੀ ਵਰਕੇ ਬਿਖਰੇ ਨੇ  ਮੇਰੀ ਗਜ਼ਲਾ ਵਾਲੀ ਮੇਜ਼ ਉੱਤੇ  ਕਦੀ ਫੁਲਾਂ ਜੇਹੇ  ਸਜਦੇ ਸੀ ਕੋਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਦੀ ਸੇਜ਼ ਉੱਤੇ ਮੈਂ ਜਦ ਵੀ  ਬੇਹ ਲਿਖਦਾ ਸੀ ਮੇਰੇ ਮਨਮੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹੁਣ ਮੇਥੋ ਖ਼ਫਾ ਜੇ ਲਗਦੇ ਨੇ  ਅਲਫਾਜ਼ ਜੋ ਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ  ਹੁਣ ਕੀਨੀ ਦੇਰ ਨਾਰਾਜ੍ਗੀਯਾ  ਕਿੰਨਾ ਚਿਰ ਮੈਨੂ ਮਿਲਣਾ ਨੀ ਮੇਰਾ ਥੋੜੇ ਨਾਲ ਵਜੂਦ ਸਇਯੋ  ਥੋੜੇ ਬੀਣ ਗੁਲਸ਼ਨ ਖਿਲਣਾ ਨੀ ਅਜ ਰਾਹਾਂ ਤਕ ਤਕ ਹਾਰ ਗਯਾ  ਕਦੀ ਮੇਰੀ ਜੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹੁਣ ਮੇਥੋ ਖ਼ਫਾ ਜੇ ਲਗਦੇ ਨੇ  ਅਲਫਾਜ਼ ਜੋ ਗੀਤ ਸੀ ਬਣ ਜਾਂਦੇ  Gulshan Mehra

उम्मीदों पर नज़र क्यूँ है !

उम्मीदों पर नज़र क्यूँ है ये चाहत का असर क्यूँ है नहीं तुझको कदर मेरी तू इतनी बेकदर क्यों है रंगों से भरी दुनिया में दिल बेरंग है मेरा न जाने कब मिलेगा मेरे दिल के संग दिल तेरा यह पागल तुझको चाहता है तुझे हर पल बुलाता है नहीं होता उधर कुछ भी यह सब कुछ बस इधर क्यों है उम्मीदों पर नज़र क्यों है यह चाहत का असर क्यों है बड़े देखे तेरे सपने बहुत देखी तेरी रहे तेरे इंतज़ार में खुली है अब भी यह बहे यह लगता है की पालेंगे तुझे अपना बना लेंगे में करता हूँ बहुत कोशिश यह कोशिश बेअसर क्यूँ है उम्मीदों पर नज़र क्यूँ है ये चाहत का असर क्यूँ है Gulshan Mehra

चाहे कुछ भी हो करके दिखाना !

आये ना  आये संग  ये  ज़माना अपनी  मंजिल  को  है  खुद  ही  पाना जो  हम  सोच  लेंगे  तो  करके  रहेंगे चाहे  कुछ  भी  हो  करके  दिखाना माने ना  माने  चाहे  यकीं   कोई अपनी  कोशिश  में  हो  ना  कमी  कोई जहाँ   सब  से  ऊपर  हमीं   हम  रहे अब  बनायेंगे  ऐसी    ज़मी  कोई हम  से  सीखेगा  अब  ये  ज़माना  कैसे है रास्तो को बनाना   जो हम सोच लेंगे  तो करके रहेंगे चाहे  कुछ  भी  हो  करके  दिखाना आँखों  में  जीत  का  हो  नज़ारा पीछे  रहना  नहीं  है  गंवारा जहाँ   से  चले   हम  वही  से  सफ़र  है जहा  रुक  जाये  वो  है  किनारा हमें  जब  मुश्किलों  ने  पुकारा  है हमने  हर  बार  खुद  को  सवारां  है जो  सपना  है  अपना  वो   पूरा  करेंगे हमें  इक  दुसरे  का  सहारा  है यूँ  हीं   बस  साथ  हमको   निभाना  यूँ  ही  है  दूरियों  को  मिटाना जो  हम  सोच  लेंगे  तो  करके  रहेंगे चाहे  कुछ  भी  हो  करके  दिखाना  Gulshan Mehra 

साईं वंदना !

साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती  बाबा सबसे न्यारी तेरी आरती बड़ी लगती है प्यारी तेरी  आरती  - २  साईं सबसे न्यारी  तेरी आरती सुबह आँखें खुली तो भी मैंने सुनी शाम अब ढल गयी तो भी मैंने सुनी सारा दिन मेरे कानो में बजती रही   जैसे मुरली हो प्यारी तेरी आरती   साईं सबसे न्यारी तेरी आरती   बाबा सबसे न्यारी  तेरी  आरती बड़ी लगती  है  प्यारी  तेरी  आरती  - 2   साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती चाहे  मस्जिद  तेरी या  हो  मंदिर  तेरा है  सभी  एक  सबका  है  तू  आसरा गाने  वालो  की  कोई  नहीं  है  कमी  गाये  ये  दुनिया  सारी  तेरी  आरती   साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती  बाबा  सबसे न्यारी   तेरी  आरती बड़ी  लगती  है  प्यारी  तेरी  आरती  - 2 साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती जो  तुमसे  माँगा  गया  तुमने  सबको  दिया तुम  बदल  दो  यह  दुनिया  तो  किस्मत  है  क्या बड़े  किस्मत  के  मारे  तेरे  दर  गए  सबकी  किस्मत  सवारे  तेरी  आरती साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती  बाबा  सबसे न्यारी   तेरी  आरती बड़ी  लगती  है  प्यारी  तेरी  आरती  - 2 साईं सबसे न्यारी तेरी  आरती  सोच   नीची  हो  और  मन  हो  पापी

अब नारी की बारी है !

कब  तक  सहमी  सहमी  रहकर पल  पल  रोती  जाये   हम हमको  जो  सहना  पड़ता  है आखिर  किसे  बताये  हम अब  राज़  घिनोने  खोलेंगी हम  सब  मिलकर  बोलेंगी ये  आवाज़  हमारी  है अब  नारी  की  बारी  है बचपन  में  शादी  न  होती तो  कितना  अच्छा  होता में  भी  कुछ  बनती  पढ़  लिख  कर हर  सपना  सच्चा  होता अब  ये  न  होने  देंगी बचपन  न  खोने  देंगी ये  आवाज़  हमारी  है अब  नारी  की  बारी  है बाहर  निकल  कर  अक्सर  अब डर  डर  के  चलना  बहुत  हुआ रोज़  की  छेड़ा  खानी  सहकर मन  में  जलना  बहुत  हुआ अब  हम  सामने  आयेंगी हम  क्या  है  बतलायेंगी ये  आवाज़  हमारी  है अब  नारी  की  बारी  है रोज़  नई कोई  मांगे  लेकर जब  चाहा  घर  से  भगा  दिया कभी  किसी  का  गला  दबाया कही  किसी  को  जला  दिया अब  हम  चुप्पी   तोड़ेंगी सबक  सिखा  कर  छोड़ेंगी  ये  आवाज़  हमारी  है अब  नारी  की  बारी  है .     Gulshan Mehra

बादल बनाते है

कुछ  नहीं  बस  बातो  से  हलचल  बनाते  है जो  आज  बिगाड़े , वो  कहाँ  कल  बनाते  है    लुटता है आम  आदमी, झूठी उम्मीद पर     और ये  सियासी  लोग  है , पागल  बनाते  है