ये ज़ाया जाग कर रातें नही होतीं हमारे से मुसलसल यार बरसातें नही होतीं हमारे से हमीं रूठें किसी से फिर हमीं उस को मनायें वा मियाँ ऐसी करामातें नही होती हमारे से नही यूँ तो हमें दिक्कत महब्बत से मगर यूँ है बिना सर पैर की बाते नही होतीं हमारे से
आधी मेहनत पे भी पूरी का पैसा मिलता है बगल में रहते है, दुरी का पैसा मिलता है ! वो हक़ के हक़ में बोलते हुए अच्छे नहीं लगते जिन्हे ख़ुद जी हुजूरी का पैसा मिलता है !
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