ये ज़ाया जाग कर रातें नही होतीं हमारे से मुसलसल यार बरसातें नही होतीं हमारे से हमीं रूठें किसी से फिर हमीं उस को मनायें वा मियाँ ऐसी करामातें नही होती हमारे से नही यूँ तो हमें दिक्कत महब्बत से मगर यूँ है बिना सर पैर की बाते नही होतीं हमारे से
मेरे इश्क में तू क्यूँ नहीं, जब, मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में रब है जैसे जिस्म में रूह है, जैसे फूल में खुशबु है, जैसे मुझ में तू ही तू है वैसे मुझ में तू ही तू है जैसे हवा छुए तुझे, जैसे पानी तुझे भिगोये, जैसे वैसे ही मुझमे भी तुझको छूने की आरज़ू है तेरी आँख के काजल से ही महकी महकी शब् है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में रब है जैसे रगों में खूँ है, जैसे दिल में जुस्तज़ू है, जैसे हरसू तू ही तू है वैसे हरसू तू ही तू है जैसे जहाँ चाहे तुझे जैसे हर दुआ मांगे तुझे जैसे वैसे ही मुझमे भी तुझको पाने की आरज़ू है तेरे नशे में डूबे डूबे सारे मंज़र अब है मेरे इश्क में आग है, पानी है, जूनून है, रब है मेरे इश्क में रब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में सब है मेरे इश्क में रब है Gulshan Me hra
कब तक सहमी सहमी रहकर पल पल रोती जाये हम हमको जो सहना पड़ता है आखिर किसे बताये हम अब राज़ घिनोने खोलेंगी हम सब मिलकर बोलेंगी ये आवाज़ हमारी है अब नारी की बारी है बचपन में शादी न होती तो कितना अच्छा होता में भी कुछ बनती पढ़ लिख कर हर सपना सच्चा होता अब ये न होने देंगी बचपन न खोने देंगी ये आवाज़ हमारी है अब नारी की बारी है बाहर निकल कर अक्सर अब डर डर के चलना बहुत हुआ रोज़ की छेड़ा खानी सहकर मन में जलना बहुत हुआ अब हम सामने आयेंगी हम क्या है बतलायेंगी ये आवाज़ हमारी है अब नारी की बारी है रोज़ नई कोई मांगे लेकर जब चाहा घर से भगा दिया कभी किसी का गला दबाया कही किसी को जला दिया अब हम चुप्पी तोड़ेंगी सबक सिखा कर छोड़ेंगी ये आवाज़ हमारी है अब नारी की बारी है . Gulshan Mehra
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