ये ज़ाया जाग कर रातें नही होतीं हमारे से मुसलसल यार बरसातें नही होतीं हमारे से हमीं रूठें किसी से फिर हमीं उस को मनायें वा मियाँ ऐसी करामातें नही होती हमारे से नही यूँ तो हमें दिक्कत महब्बत से मगर यूँ है बिना सर पैर की बाते नही होतीं हमारे से
जब से मुझ पे उसकी रहमत हो गई रेज़गारी में भी बरकत हो गई लड़ते लड़ते थक गए फिर आपसे एक दिन हमको मुहब्बत हो गई कौन जीना चाहता था इस तरह और अब यूँ हैं कि आदत हो गई ये सिला है बन्दगी का बस तो फिर हो गयी जितनी इबादत हो गई आप सब से प्यार करते रह गये आप ही से सबको नफ़रत हो गई तीन में हैं आप न तेरह में हैं देखिए गुलशन जो हालत हो गयी
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