अब नारी की बारी है !
कब तक सहमी सहमी रहकर
पल पल रोती जाये हम
पल पल रोती जाये हम
हमको जो सहना पड़ता है
आखिर किसे बताये हम
अब राज़ घिनोने खोलेंगी
हम सब मिलकर बोलेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
बचपन में शादी न होती
तो कितना अच्छा होता
में भी कुछ बनती पढ़ लिख कर
हर सपना सच्चा होता
अब ये न होने देंगी
बचपन न खोने देंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
बाहर निकल कर अक्सर अब
डर डर के चलना बहुत हुआ
रोज़ की छेड़ा खानी सहकर
मन में जलना बहुत हुआ
अब हम सामने आयेंगी
हम क्या है बतलायेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
रोज़ नई कोई मांगे लेकर
जब चाहा घर से भगा दिया
कभी किसी का गला दबाया
कही किसी को जला दिया
अब हम चुप्पी तोड़ेंगी
सबक सिखा कर छोड़ेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है .
आखिर किसे बताये हम
अब राज़ घिनोने खोलेंगी
हम सब मिलकर बोलेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
बचपन में शादी न होती
तो कितना अच्छा होता
में भी कुछ बनती पढ़ लिख कर
हर सपना सच्चा होता
अब ये न होने देंगी
बचपन न खोने देंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
बाहर निकल कर अक्सर अब
डर डर के चलना बहुत हुआ
रोज़ की छेड़ा खानी सहकर
मन में जलना बहुत हुआ
अब हम सामने आयेंगी
हम क्या है बतलायेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है
रोज़ नई कोई मांगे लेकर
जब चाहा घर से भगा दिया
कभी किसी का गला दबाया
कही किसी को जला दिया
अब हम चुप्पी तोड़ेंगी
सबक सिखा कर छोड़ेंगी
ये आवाज़ हमारी है
अब नारी की बारी है .
Gulshan Mehra
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